क्या ये...... के जमाई जिनकी न कोई इज्ज़त नाहिं कोई सुनता भाई..??
क्या ये...... के जमाई जिनकी न कोई इज्ज़त नहिं कोई सुनता है मेरे भाई..??
(कृप्या रिक्त स्थानों का गलत अर्थ न निकालें, जो भी निकालें सही निकालें, फिर वह चाहे गलत ही क्यों न हो..!!)
नगरपालिका के कर्मचारियों की बड़ी फजीहत.. आदेश न मानों तो अधिकारी चिल्लाते हैं मान लो तो टुच्चे भी धमका जाते हैं।
।।चर्चित समाचार एजेंसी।।
।।शिवपुरी 21/07/25।। नगर पालिका शिवपुरी मध्य प्रदेश की अकेली ऐसी नगर पालिका नहीं है जहां पर कर्मचारियों पर नाना प्रकार के जुल्म ना ढाए जाते हों। समूचे मध्य प्रदेश में छोटे कर्मचारियों के यही हालात हैं। अधिकारियों पर जब भी जनप्रतिनिधि या शासन के कोई निर्देश या कड़े संदेश आते हैं तो वह सबसे पहले वह अपनी भड़ास या अपनी जिम्मेदारी इन्हीं छोटे कर्मचारीयों पर निकालते हैं,और मजबूरी इन छोटे कर्मचारी यानि केवल वह नहीं जो मध्य प्रदेश शासन का हिस्सा हैं, असल में वह ज्यादा हैं जो अंशकालीन या संविदा पर हैं,या फिर ठेकेदारी प्रथा के अधीन रखे गए हैं। वह अधिकारी के आदेश का पालन करने निकलते तो हैं पर भगवान का नाम ले लेकर अपना काम ही चला पाते हैं। हाल ही में शिवपुरी शहर में अतिक्रमण विरोधी मुहिम चलाई जा रही है हालांकि इस तरह की मुहिम पहले भी चलाई जा चुकी हैं जिनके परिणाम बहुत ज्यादा अच्छे नहीं आए हैं, फिर भी शासन के अंग होते हुए जनता को थोड़ी बहुत तसल्ली तो देनी ही पड़ती है। पिछले 15 दिन पहले अतिक्रमण विरोधी एक सामूहिक अभियान चलाया गया था, जिसमें प्रशासन की संयुक्त टीम पीडब्ल्यूडी, यातायात तथा पुलिस प्रशासन, नगर पालिका एवं राजस्व विभाग ने संयुक्त रूप से इस मुहिम को अंजाम दिया था। जिसमें लगभग 15 से 20 दुकानों के टीन शैडो को हटाया और लगभग 30000 रुपए के जुर्माना भी लगाया गया था
परंतु वह मुहिम बाद में केवल नगर पालिक की ही बन कर रह गई बाकी विभागों ने इंटरेस्ट ही नहीं लिया।
*जहां बल्लमों पर प्रहार की आती है बारी, तुरंत ही अवला बन जाते हैं अत्याचारी..*
जैसे ही मीडिया द्वारा सवाल किया गया कि गरीबों के टीनशेड, छज्जे एवं ठेलों को तो हटा दिया गया, परंतु अमीरों की नुमाइश पर जोर क्यों नहीं आजमाया गया..?? तो नगर पालिका के सीएमओ ने कहा कि माननीय कलेक्टर साहब ने पीडब्ल्यूडी को आदेश दिए हैं कि वह अपनी सड़कों को चिन्हित कर लें उसके बाद जो भी व्यक्ति गलत दिखेगा हम उस पर कार्रवाई करेंगे। जबकि पीडब्ल्यूडी विभाग के एसडीओ गुप्ता जी को कोई जानकारी ही नहीं है। क्यों..? क्योंकि इनके लिऐ कलेक्टर भी कुछ मायने नहीं रखता है।15 दिन बीत जाने की बाद भी आज भी वही गरीबों पर। कार्यवाही की जा रही है। कार्यवाही में ठेला, गुमठी, कहीं पोस्टर,किसी के बैनर, तो कोई छोटे-मोटे दुकानदार की टंकी या किसी मजदूर के तस्सल-फावड़े जप्त किए जा रहे हैं। दरअसल बड़े व्यवसायियों के प्रतिष्ठानों के आसपास भी जाने से घबराते हैं नगर पालिका की यह कमजोर कर्मचारी।
*निकले थे शेर बनके शिकार करने, लोमड़ी की धमक से दबे पांव लौट आए..*
हाल ही में यानि कि 18 जुलाई को नगर पालिका का अतिक्रमण विरोधी अमला अतिक्रमण प्रभारी श्री खरे के निर्देशन में बाजार में उतरा।
तीन-चार छोटी कार्यवाहियां करने के पश्चात जैसे ही सिद्धेश्वर टेक पर नव निर्माणाधीन भवन के पास पहुंचा तो नजारा बदल गया था। इस निर्माण को कर रहे कारीगरों को श्री खरे ने हिदायत दी कि रोड से कंस्ट्रक्शन का सामान हटा लो और अपनी जद में रहकर काम करो तथा नगर पालिका ऑफिस में आकर के अपनी भवन निर्माण स्वीकृति जरूर दिखा आओ। ऐसा कहकर एक फावड़ा और तत्सल गाड़ी में डालकर वह वहां से चल दिए। थोड़ा दूर ही पहुंचे थे कि निर्माणाधीन भवन का मालिक भी अपनी एक्टिवा से वहां पहुंच गया, और अनाउंसमेंट करने वाली गाड़ी के आगे अपनी एक्टिवा लगाकर उसने वाइब्रेशन भरी आवाज में जो चिल्लाचोंट की है तो खरे भी धरे रह गए। 25 लोगों से अधिक का अमला भी उस व्यक्ति से बहस नहीं कर पा रहा था, खरे और उनके कुछ साथी कह रहे थे कि भवन की निर्माण स्वीकृति कहां हैं..?? दिखावा दीजिए हमें कोई आपत्ति नहीं है। जबकि भवन निर्माता एवम सीडी सुपर मार्केट का संचालक शुद्ध गालियां देकर इन सभी कर्मचारियों को हड़काकर कह रहा था कि ढाई लाख (250000) दिए हैं बापों को, कौन रुकवाता है देखता हूं..? तुम्हारे बाप चीफ सेक्रेटरी का फ़ोन आयेगा अभी, तुम्हारी और तुम्हारे बापों की.......फट जाएगी। नौकरियां खा जाऊंगा तुम्हारी। और यह चुपचाप सुन रहे थे।
*181 कटवाने को लेकर हुई महिला से नोकझोंक..*
दो बत्ती चौराहे के पास के पी सिंह की कोठी के पीछे एक मकान के आगे किसी महाशय ने कब्जा कर रखा था, जिसे उसने पार्क का रूप देकर जाली एवं फेंसिंग से कवर्ड कर लिया था। नगर पालिका शिवपुरी के कर्मचारी इस कब्जे को हटाने गए मगर जैसे ही उस मकान के प्रांगण में प्रवेश करने का प्रयास किया,तो कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया। बहस चलती रही थोड़ी देर में एक महिला अंदर से आई और बोली कि आपके पास महिला स्टाफ है..?? है तो ही कदम बढ़ाना.. वरना चुपचाप से यहां से भाग जाना..। और आप किसकी अनुमति से यहां पर आए हैं..?? जिस पर श्री खरे एवं उनके कुछ कर्मचारी बोले कि आपने रोड पर पार्क बना रखा है और उस पर कब्जा कर लिया है जो गलत है। जिसकी 181 पर शिकायत लगी है, आप तो बस शिकायत कटवा दीजिए पार्क छोड़िए पूरा रोड ही कब्जा कर लीजिए हमें कोई दिक्कत नहीं। तभी पड़ोस में रह रही एक और महिला यह चिल्लपों सुनकर घर से बाहर आ गई और वह भी अपनी स्टाइल में इनको कहानी सुनाने लगी कहा कि, गरीबों के घर तो तोड़ आते हो, जरा अमीरों के चबूतरों को हिलाकर देखो तब समझ आए, कि तुम कितने ताकतवर हो। चिड़िया मार नहीं पाते शेर का शिकार करने निकल आते हो। श्री खरे ने कहा माताजी आपका गुड्डू कहां है..?? जिन्होंने 181 लगाई है। माताजी बोलीं गुड्डू तो नहीं है, पर गुड्डू की माताजी हैं और 181 तो नहीं कटेगी, पहले पार्क हटाओ फिर 181 कटवायो। वहीं पार्क की मालकिन बोलती हैं कि पार्क में घुस कर तो दिखाओ फिर अपनी टांग भी तुड़वाओ। क्या करें बेचारे जेसीबी डंपर और एक अनाउंसमेंट वाली गाड़ी के साथ 25 से 30 कर्मचारी गर्दन झुकाकर चले आए और निकल गए दूसरे शिकार पर।
यहां समस्या इन कर्मचारियों के आत्मबल को मजबूत बनाने की है, अगर कोई आला अधिकारी, सीएमओ, विधायक,नगर पालिका अध्यक्ष या संबंधित वार्ड का पार्षद वहां पर हो तो इनके हौसले बुलंद हो जाएं और यह लोग किसी के भी सामने आ जाएं, पर लड़ने के लिए केवल इन लोगों को छोड़ दिया जाता है जो इनके साथ नाइंसाफी है।
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