एक गांव ऐसा जहां श्मशान को भी नहीं घाट, पानी में मिलती है मुक्ति..
खरई जालिम गाँव का, वह नज़ारा जिसने पूरे देश को किया हैरान यहां मुक्तिधाम ही नहीं..
।।चर्चित समाचार एजेंसी।।
।।शिवपुरी 22/08/25।। जी हां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जहां हम विकासशील देश से विकसित भारत की ओर बढ़ रहे हैं। वहीं आज भी कई ग्रामीण क्षेत्रों में शव को जलाने के लिए मुक्तिधाम तक नहीं हैं। कहीं छत नहीं है तो कहीं जमीन भी नसीब नहीं है। ऐसा ही एक मामला 20 अगस्त की दोपहर चर्चाओं में आया जब पोहरी तहसील के बैराड़ थाना अंतर्गत आने वाले गांव खरई जालिम से आया जब कुछ गमीण उसी गांव के एक युवक की लंबी बीमारी के चलते हुई मौत के बाद उसके शव को दाग लगाने के लिए एकजुट होकर नदी के बीच से गुजरते हुए सूखे स्थल की तलाश में अपने-अपने हाथों में एक-एक लकड़ी ले और शव को कंधे पर ले जाते हुए फोटो और वीडियो के माध्यम से दिखे, इस दृश्य ने देश के यथार्थ विकास की नई कहानी गड़ दी जो आज समूचे प्रदेश और देश में चर्चा का विषय बनी हुई है।
हुआ यूं कि शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील के बैराड़ थाना अंतर्गत खरई जालिम गाँव में मुक्तिधाम न होने की वजह से बुधवार को 17 वर्षीय विवेक पुत्र रामकुमार प्रजापति की अंतिम यात्रा चर्चा का विषय बन गई ,ग्रामीणों ने विवेक के शव को कंधों पर उठाकर हाथों में लकडिय़ां लेकर लगभग चार फीट गहरे पानी से भरी पार्वती नदी पार किया। इस नजारे को किसी ग्रामीण ने अपने कैमरे में कैद कर लिया उसके बाद इस वीडियो को जिसने देखा वही भावुक हो गया।
दरअसल मंगलवार शाम विवेक ने दम तोड़ दिया बुधवार को उसके निजी गांव से सब यात्रा को सजाकर दाह संस्कार के लिए ले जाया गया परंतु दाह संस्कार के लिए सूखी जगह चाहिए थी जिसे सभी लोग ढूंढ रहे थे। खरई ही नहीं बल्कि पुचीपुरा गांव के लोग भी पार्वती नदी के किनारे या नदी के आसपास की जगह पर अंतिम संस्कार करते हैं। चूंकि बारिश के मौसम में नदी में लगभग 4 फीट तक पानी था इसीलिए सूखी जगह ढूंढने दूर तक जाना पड़ा क्योंकि वहां के रहवासियों के लिए यह कोई नया काम नहीं है परंतु फिर भी वहां के गमीण ईश्वर से यह दुआ मांगते हैं कि हमारे गांव में बरसात में किसी को मौत ना आए क्योंकि सूखी जगह मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है। विवेक की मौत ने
एक जहां ओर पूरे गांव वालों को गमगीन किया वहीं देश के विकसित हो रहे भ्रष्ट सिस्टम पर करारा तमाशा भी दिया है। इस गांव के आसपास की सारी जमीन निजी है शासकीय जमीन ना हो पाने के कारण शमशान घाट नहीं है इसीलिए यहां के निवासियों को नदी किनारे या नदी के आसपास सूखी जगह पर ही अंतिम संस्कार करना पड़ता है।
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