News Breaking
Live
wb_sunny

Breaking News

कुर्सी हो रही भारी... दांव पे दांव और शह-मात का खेल जो खेल रहे खिलाड़ी:-लेखक ब्रजेश तोमर की कलम से

कुर्सी हो रही भारी... दांव पे दांव और शह-मात का खेल जो खेल रहे खिलाड़ी:-लेखक ब्रजेश तोमर की कलम से

*📰नगर पालिका प्रहसन- दाव पर दांव,शह-मात का खेल जारी...!*
*(👉🪑चक्कर कुर्सी का...🪑)*
।।शिवपुरी 27/06/25।।
💫नगर पालिका में इन दिनों गुट बंदी चरम पर है।शहर विकास के मुद्दों पर ध्यान न देते हुए जंग अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर छिड़ी है।पार्षदों का एक खेमा जहां अध्यक्ष परिवर्तन का ताना बाना रच रहा है वहीं दूसरा खेमा अध्यक्ष के समर्थन में चल रहा है।आये दिन गोलबंदी जारी है। दांव पर दांव चल रहे हैं और दोनों खेमो के बीच शह-मात का खेल जारी है।
कुछ ऐसी ही गोलबंदी चुनाव के बाद अध्यक्ष बनाने को लेकर भी हुई थी। मगर उस समय शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया का सीधा होल्ड था जिसके चलते तमाम चक्रव्यूहों को तोड़कर अंतिम दौर में उन्होंने अपना अध्यक्ष बना ही लिया था जिसके फलस्वरूप यह खेमा तिलमिला कर रह गया था।विरोध की यह चिंगारी उसी समय से राख में दबी हुई अविश्वास प्रस्ताव लाने की निर्धारित समयावधि के लिए सुलग रही थी जो अब पूरी हो रही है।
समय आते आते एक सुनियोजित प्लानिंग के तहत अब वह विद्रोह आग पकड़ने लगा। करैरा के प्रसिद्ध बगीचा सरकार हनुमान मंदिर पर असन्तुष्ट खेमे के गुट विशेष के एक "कसम समारोह"में असंतोष की लपटे बाहर आने लगी।इसी के साथ डेमेज कंट्रोल का प्रयास शुरू हो गया।महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस सम्पूर्ण मामले में जनहित कहीं नजर नही आता बल्कि "स्वहित" नजर आता है। मजेदार बात यह भी है कि इस परिवर्तन चाहने के क्रम में विरोधी अन्य दलों के कम,घर अर्थात उसी पार्टी के ज्यादा हैं जिसकी अध्यक्ष है। मजेदार यह भी है कि इस घटनाक्रम में अध्यक्षी का मंसूबा बांधे बैठा मास्टर माइंड कौन है यह भी फिलहाल तय नही है।कहने का आशय यह है कि आग को हवा कहां से और क्यों दी जा रही है यह भी अभी तय नहीं है
💫शुरुआती दौर से ही पार्षदों की तीन केटेगरियाया समझ मे आई।
★एक वो जो प्रारम्भ से ही किचिन केबिनेट में जगह बनाने में सफल रहे।इनमें से कुछ की सोच यह थी कि महिला अध्यक्ष की चाभी वह अपने हिसाब से एठेंगे और वो रबर स्टाम्प बन जाएगी लेकिन हुआ इसका उल्टा।अध्यक्ष ने खुद की चाभी अन्य हाथों में देने के बजाय उनकी चाभी भी अपने हाथों में ले ली,नतीजतन कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया तो कुछ दोनों दियो में तेल देते हुये समय का इंतज़ार करने लगे जिनके चेहरे अब उजागर होते जा रहे हैं।
★दूसरी केटेगरी वह रही मौके और परिस्थिति के बीच सामंजस्य बिठाते हुए चलने लगी।उनका सूचकांक कभी ऊपर तो कभी नीचे उठता-गिरता रहा मगर पहिया चलता रहा।वे अब भी किसी नतीजे पर नहीं हैं बल्कि हवा के रुख को पहचानने का प्रयास कर रहे हैं।समूह के दौरान भी वे पीछे की पंक्ति को सुशोभित करते हैं..!
★अब तीसरी वैरायटी  वह रही जिन पर प्रारम्भ से ही विरोधी धड़े की सील लग गयी।यह प्रजाति बोलती अधिक और करती कम थी।इनमें कुछ सामने तो कुछ पीठ पीछे बोलने में अभ्यस्त थे। लेकिन सारी खबरें अन्तःखाने तक पहुंचती रहीं ।लिहाजा ये वरीयता के क्रम में आ ही नहीं पाए।समय के साथ इनमें से कुछ अपनी विषय फैकल्टीस में अपना स्थान परिवर्तन कर अलग-अलग गोटी फिट करने में भी जुटे रहे।कई मर्तबा तो गिरगिट की तरह रंग भी बदला मगर नतीजा ढांक के तीन पात रहा।हालांकि इनमें कुछ वे भी है जो हर चुनाव के प्रारम्भ में ही महल विरोधी सुर आलापते रहे हैं।
अब फिल्हाल नगरपालिका की इस कशमकश में जद्दोजहद अभी भी जारी है और घोषणावीरों के तरकश से तीर लगातार छोड़े जा रहे है किंतु निष्कर्ष फिलवक्त तक तो शून्य ही है।
हालांकि फिल्हाल श्रीमंत यशोधरा राजे सिंधिया ने स्वास्थ्य कारणों से अपनी राजनीतिक सक्रियता कम कर दी है। जिस वजह से वह पाला खाली है जिसके कारण सुई ज्योतिरादित्य सिंधिया पर अटकी हुई है। जिनकी सहमति के बिना पत्ता भी नही हिल सकता।कुछ दिन पहले असन्तुष्ट धड़े ने सांसद सिंधिया से भी मिलने की जुगत लगा ली और पहुंच भी गये महल के अन्तःखाने में, मगर वहाँ जाकर अरमान ठंडे हो गए।सूत्र बताते हैं कि वहाँ पहुचे तो दोनों ही धड़े अपनी जिज्ञासा को लेकर लेकिन गाइड लाइन सिर्फ विकास पर बात करने की दी गयी साथ ही पार्षद पतियों को नगर पालिका में " प्रवेश" निषेध का फरमान भी सुना दिया गया । असंतुष्ठ खेमे को यह नागबार गुजरना ही था सो उनकी खीज ने मध्यरास्ते में एक विवाद को भी जन्म दे दिया।हाईकमान से मुलाकात के बाद अब प्रभारी मंत्री भी इस मुद्दे पर हांथ खींच चुके हैं।
सर्वविदित है कि अज्ञात कारणों से स्थानीय विधायक भी नगरपालिका की फिलवक्त कार्यशैली को लेकर कई मर्तबा अपना असंतोष जाहिर कर चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि  परिवर्तन की विचारधारा में गुटीय राजनीति को दम भी दिए हुए हैं और इस सिलसिले में दिल्ली दरबार में भी हाजिरी दे दी थी मगर कोई पक्का भरोसा नहीं मिला।
सूत्र यह भी बताते हैं कि अध्यक्षी खेमे को सहारा भाजपा जिलाध्यक्ष का है जिन्हें वे भाई मानती हैं और ऐसे में उन्हें दम दिल्ली दरबार की है और हरी झंडी भी मिली हुई है।
अब ऐसे में दोनों ही धड़ों के बीच कशमकश,खींचतान का दौर जारी है और "न्यूटल फेस" पार्षद रबर की तरह खींचे जा रहे हैं जो फुटवाल बने हुये हैं।
जानकारों का यह भी मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव न हो इसके लिये आवश्यक पार्षदों की संख्या से अधिक संख्या तो फिल्हाल अध्यक्षीय खेमे की किचिन केबिनेट के सदस्य हैं और इसके अलावा न्यूटल फेस भी किसी उकसावे में आने से अपना अहित कराने के मूड में नही है ।रही बात असन्तुष्ट धड़े की तो इसमें भी उंगलियों पर गिनने लायक लोग ही आग में घी डाल रहे हैं,बाकी" वेट एंड वॉच" की मुद्रा में है।
 कुछ दिनों से अब जंग सोशल मीडिया पर भी छिड़ गई है जिसमे "ऑडियो वायरल वॉर"शुरू हो गयी है।दोनों ही पक्षो से तीर चलाये जा रहे हैं ऐसे में आमजन खूब मनोरंजन कर रहा है।सोशल मीडिया पर स्तीफों को लेकर खूब चिकोटिया काटी जा रही हैं लेकिन फिल्हाल अभी तक किसी ने भी"स्तीफा अस्त्र"दांगने की हिम्मत नही दिखाई।
💫अंत क्या होगा यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है लेकिन फिल्हाल शिवपुरी नगर पालिका में कूटनीति चरम पर है।
प्रश्न उठता है कि क्या अध्यक्ष परिवर्तन से शहर को कुछ हासिल होगा..? क्या ग्यारंटी है कि आने बाला व्यक्ति स्वहित छोड़ सिर्फ विकास ही करेगा..?
👉यदि हां तो वो योग्यता धारी कौन जिस एक नाम पर असन्तुस्टो के धड़े की पूर्ण सहमति हो जाएगी..? संभावना तो यह भी है कि उस नाम की घोषणा मात्र से इस असन्तुष्ट धड़े की एकता डगमगा जाएगी और "हम-हम"की जंग छिड़ जाएगी जिसमें न्यूटल फेस फिर पीछे सरक जायेंगे।
क्या हर रोज चीखने-चिल्लाने बाले असन्तुष्ट धड़े के लोग उस परिस्थिति में अपना विरोध जता पाए जब पेशी हाई कमान सिंधिया के सामने हुई..?
क्या साथ खड़े लोगो पर दोनों ही खेमो को पूर्ण विश्वास है वह भी तब जब वे जानते हैं कि विभीषण उनके कुल के ही थे..।
खैर, परिणाम जो भी हो लेकिन खींचतान की इस छीछालेदर ने नगर पालिका की प्रतिष्ठा को मात्र मनोरंजन का साधन बना दिया है जिसमें विकास का मुद्दा बहुत पीछे छूट गया।यह भी तय है कि यह सम्पूर्ण घटनाक्रम बेनतीजा ही विराम होगा किंतु आपसी सम्बन्धो में कटुता की भावना अवश्य पैदा हो गयी,जबकि प्रतिस्पर्धा सिर्फ शहर विकास की होनी चाहिये थी।।अब देखना यह है कि इस कहानी पर कब,कैसे और कहां पूर्णविराम लगता है??
लेखक:- ब्रजेश तोमर 
(वरिष्ठ पत्रकार एवम स्तंभकार)

Tags

Newsletter Signup

Sed ut perspiciatis unde omnis iste natus error sit voluptatem accusantium doloremque.

एक टिप्पणी भेजें