👉 📰‘ #सावधान..!! आपको कोई सुन रहा है….(एल्गोरिदम की खतरनाक दुनियां.. लेख बृजेश की कलम से)
*सावधान..!! आपको कोई सुन रहा है...?*
("एल्गोरिदम" की दुनियां में निजता का संकट..)
।।चर्चित समाचार एजेंसी।।
*✒️बृजेश सिंह तोमर*
★हमारे जीवन में एक अदृश्य शक्ति हर पल हमारे इर्द-गिर्द है जो कभी हमारी रुचियों को भांप लेती है, और कभी हमारी सोच को ही ढालने लगती है। इस अज्ञात शक्ति का नाम है "एल्गोरिदम"। यह शब्द तकनीकी जरूर है, लेकिन इसका असर हमारे रोजमर्रा के फैसलों से लेकर हमारे सोचने, समझने और चुनने तक की स्वतंत्रता पर दिखने लगा है। एल्गोरिदम एक तयशुदा गणनात्मक प्रक्रिया है, जो किसी समस्या का हल निकालने के लिए बनाए गए नियमों का एक क्रम है। ये नियम कंप्यूटर और मशीनों को यह सिखाते हैं कि किसी इनपुट पर क्या आउटपुट देना है। लेकिन असल सवाल यह है कि जब कोई मशीन खुद तय करने लगे कि हमें क्या देखना है, क्या पढ़ना है और किससे जुड़ना है तो यह सुविधा ज्यादा है या खतरा,इस पर विचार जरूरी हो जाता है..?
जब आप अपने मोबाइल में किसी दोस्त से बात करते हैं कि नया मोबाइल लेना है, और कुछ ही मिनटों बाद सोशल मीडिया पर मोबाइल के विज्ञापन नजर आने लगते हैं, अथवा आप आपस मे किसी विषय पर चर्चा करते है और कुछ समय बाद मोबाइल देखते है तो उस विषय के इर्द गिर्द पोस्ट ,विज्ञापन अचानक सामने आ जाते है तो क्या यह सिर्फ संयोग होता है..? नहीं..। अर्थात कोई तो है जो आपको सुन रहा है..!यही एल्गोरिदम का कमाल है।
'एल्गोरिदम' शब्द सुनने में कठिन लगता है, लेकिन यह दरअसल एक तयशुदा नियमों और निर्देशों का समूह होता है, जो किसी विशेष काम को पूरा करने के लिए कंप्यूटर या मशीनों को निर्देश देता है। जैसे किसी रेसिपी में बताया जाता है कि सबसे पहले क्या करना है, फिर क्या डालना है और अंत में क्या पकाना है , ठीक वैसे ही एल्गोरिदम भी डिजिटल दुनिया में तय करते हैं कि क्या दिखाना है, क्या छिपाना है, किसे महत्व देना है और किसे पीछे करना है।
सोशल मीडिया, गूगल सर्च, यूट्यूब, ऑनलाइन शॉपिंग, न्यूज वेबसाइट इन सभी के पीछे एल्गोरिदम ही वो अदृश्य ताकत है, जो तय करती है कि हमें क्या दिखाई देगा और क्या नहीं। ये हमारी रुचियों, व्यवहार, क्लिक, स्क्रोल और पसंद को देखकर लगातार हमें समझते हैं, और उसी हिसाब से कंटेंट या विज्ञापन परोसते हैं।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यूज़र को अपनी पसंद का कंटेंट बिना ज्यादा खोजे ही मिल जाता है। यूट्यूब पर आपने एक मोटिवेशनल वीडियो देखा, अगली बार वही एल्गोरिदम आपको वैसी ही और वीडियो दिखाएगा। इससे समय की बचत होती है और अनुभव भी बेहतर लगता है।
लेकिन यही सुविधा कब खतरे में बदल जाए, इसका अंदाज़ा हमें अक्सर नहीं होता। एल्गोरिदम धीरे-धीरे हमारे सोचने, पसंद करने, यहां तक कि निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित करने लगते हैं। हम जो देखते हैं, वही सोचते हैं। और जो नहीं दिखाया जाता, वह धीरे-धीरे हमारी दुनिया से गायब हो जाता है।
राजनीतिक प्रचार, फर्जी खबरें, नफरत फैलाने वाला कंटेंट भी एल्गोरिदम की पसंद और कंपनियों की नीतियों के हिसाब से तेज़ी से फैलता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि एल्गोरिदम किसी इंसान की तरह सही-गलत नहीं सोचता, वह सिर्फ आँकड़ों और व्यवहार के आधार पर फैसले करता है। यही वजह है कि कई बार यह पक्षपातपूर्ण या भ्रामक भी हो सकता है।
तकनीकी रूप से देखें तो एल्गोरिदम मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित होते हैं। ये निरंतर डेटा इकट्ठा करते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं और अपने निर्णयों को सुधारते रहते हैं। उदाहरण के लिए , फेसबुक या इंस्टाग्राम पर आप किस पोस्ट पर ज्यादा देर रुके, किस पर रिएक्शन दिया, किसे स्क्रोल कर दिया ,ये सब डेटा उस एल्गोरिदम को सिखाता है कि आप आगे क्या देखना चाहेंगे।
भविष्य की दुनिया में एल्गोरिदम और भी ताकतवर और आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं। ऑटोमेशन, ड्राइवरलेस गाड़ियां, चिकित्सा क्षेत्र में रोग पहचान, न्याय व्यवस्था में फैसले का आकलन ,हर क्षेत्र में एल्गोरिदम की भूमिका बढ़ती जा रही है। लेकिन जैसे-जैसे इसकी ताकत बढ़ रही है, उसी अनुपात में इससे जुड़ी नैतिक और सामाजिक चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं।
इस तकनीक के फायदे भी हैं। यह हमें हमारे पसंद की चीजों तक तेज़ी से पहुंचाता है, समय बचाता है और जीवन को ‘कस्टमाइज्ड’ बनाता है। डॉक्टर से लेकर ट्रैफिक कंट्रोल तक, कृषि से लेकर मौसम पूर्वानुमान तक, हर क्षेत्र में एल्गोरिदम ने मानव सुविधा को अगले स्तर पर पहुंचाया है। लेकिन इसी तकनीकी चमत्कार में एक गंभीर खतरा भी छिपा है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
हमारे निजी डेटा की सुरक्षा, विचारों की स्वतंत्रता, डिजिटल प्लेटफॉर्म की जवाबदेही और एल्गोरिदम के निर्णयों में पारदर्शिता ये सवाल अब तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक और लोकतांत्रिक मुद्दे बन चुके हैं।
इसलिए अब जरूरी है कि आम नागरिक, नीति-निर्माता और टेक कंपनियाँ मिलकर इस दिशा में संतुलन बनाएं। एल्गोरिदम हमारे सहायक बनें, हमारे नियंता नहीं।
तो अगली बार जब आप कुछ सोचें या बोले और आपको वैसा ही कुछ मोबाइल स्क्रीन पर दिख जाए तो चौंकिए मत। सावधान रहिए, क्योंकि डिजिटल दुनिया में अब शायद ही कोई क्षण अकेलापन शेष है। एल्गोरिदम आपको सुन रहा है, समझ रहा है और आपकी दुनिया को अपने तरीके से ढाल रहा है...!
– बृजेश सिंह तोमर
(वरिष्ठ पत्रकार,समाज चिंतक एवं लेखक)
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