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जनता ने ली तफरी..कहा जब नेता की कोई जात नहीं तो अब नेता पर करनी कोई बात नहीं..

जनता ने ली तफरी..कहा जब नेता की कोई जात नहीं तो अब नेता पर करनी कोई बात नहीं..

जनता ने ली तफरी..कहा जब नेता की कोई जात नहीं तो अब नेता पर कोई बात नहीं..
 (कहावत भी दोहराई कि, जाट मरो तब जानिए जब घर में तेरवीं होय)
 तो पार्षद भी आए सोशल मैदान में कहा कल इस्तीफा तय..

 ।।चर्चित समाचार एजेंसी।।
 ।।शिवपुरी 27/08/25।।
मंगलवार की शाम से लेकर बुधवार की शाम तक सोशल मीडिया अकाउंट को हैंडल करने वाले पार्षदों  ने अपने-अपने इस्तीफे देने की बात पर आखिरी मोहर लगाते हुए कहा कि गुरुवार की सुबह हम अपना इस्तीफा कलेक्टर को सौंप देंगे। इस्तीफा देने दौड़ में सोशल मीडिया पर सबसे पहले आए वार्ड नंबर 6 से कांग्रेस की पार्षद मोनिका सीटू सरैया उसके बाद वार्ड नंबर 4 से संजय गुप्ता ने अपने सोशल अकाउंट से यह घोषणा कर दी कि मैं बाबा का भक्त हूं और मैं अपनी कसम कल पूरी करने जा रहा हूं हालांकि उन्होंने एक लिस्ट भी वायरल की जिसमें अपने द्वारा कहे गए कथन के अलावा 2022 से उनके वार्ड में अधूरे पड़े कार्य और पेंडिंग पड़ी फाइलों के बारे में भी काफी कुछ लिखा, वहीं वार्ड नंबर 11 से नीलम अनिल बघेल ने भी अपने इस्तीफ़ा देने की बात कह दी साथ ही कहा कि पार्षद पद से ही नहीं बल्कि भाजपा की सदस्यता से भी इस्तीफा दूंगी क्योंकि मैंने और मेरे पति ने 20 साल से अधिक इस पार्टी की सेवा की बदले में मिला धोखा... जो अब सहन नहीं होता चूंकि पार्टी को अब नेता नहीं माफिया चला रहे हैं जो नागवार है,वार्ड नंबर 20 से विजय शर्मा बिंदास, वार्ड नंबर 21 से रघुराज गुर्जर उर्फ राजू, वार्ड नंबर 15 से ममता बाईसराम धाकड़, वार्ड नंबर 37 से गौरव सिंघल, वार्ड नंबर 17 से राजा यादव, वार्ड नंबर 12 से सरोज महेंद्र धाकड़ ऐसे करके कुल 9 लोगों का स्टेटमेंट उनके खुद के सोशल अकाउंट से आया है जिसमें उन्होंने इस्तीफ़ा देने की बात गुरुवार 28 अगस्त को स्वीकारी है। अब देखना यह है कि क्या यह लोग इस्तीफ़े देंगे..??  क्या इस्तीफा देने के बाद उनके इस्तीफ़े स्वीकार्य होंगे..?? क्योंकि नगर पालिका शिवपुरी की राजनीति में भी गंदी राजनीति दिखने लगी है जिसे शहर की जनता अब स्वीकार कर पाने में सक्षम नहीं है। जैसा कि विदित है,शिवपुरी नगर पालिका का उठापटक का खेल जनता के लिए जहां रोचक होता जा रहा है वहीं विकास की आस छोड़ चुकी शहर की जनता को विकास की बातें करने वाले नेताओं के लिए थू-थू का सबब बनता जा रहा है। जहां 25 तारीख को अविश्वास प्रस्ताव के लिए कार्यालय कलेक्टर शिवपुरी में सभी विद्रोही पार्षदों के साइन  वेरीफिकेशन होने थे वहीं बगीचा सरकार की शपथ लेने वाले कुछ पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव को वापस लेने की कवायद छेड़कर पूरे शहर को हैरत में डाल दिया। जनता के लिए यह बहुत ही आश्चर्य का विषय तो बना ही साथ ही लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से बगीचा सरकार की कसम खाने वाले पार्षदों, और इस संगठन के नेताओं या कह लीजिए कर्ता धार्ताओं को खूब आड़े हाथ ले लिया, जिसके जो मन आया उसने वैसा कहा।
 अविश्वास प्रस्ताव लाने पार्षद हुए कम तो सिंधिया और शीर्ष नेतृत्व में नंबर बढ़ाने  लिया यूटर्न..
दो माह से चल रही इस उठापठक  में अध्यक्ष के खिलाफ लामबंद हुए पार्षदों का गुट बढ़ता जा रहा था शुरुआती तौर पर तो सिर्फ बगीचा सरकार करैरा के दरबार में अध्यक्ष को पद से हटाने या सामूहिक इस्तीफा देने की कसम खाने वाले पार्षद ही साथ थे लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया वैसे-वैसे कारवां भी बढ़ता गया और 17 से 32 पार्षद तक यह आंकड़ा पहुंच गया। फिर इसमें यह भी कयास लगाए जाने लगा कि जीत तो निश्चित है पर फिर भी कई ऐसे पार्षद हैं जिनके लिए पैसे ही सब कुछ है, इसके लिए हमें पहले से फंड की व्यवस्था रखनी है। जिस पर बगीचा सरकार संगठन के कुछ पार्षद जो धनाढ्य भी हैं उन्होंने हुंकार भरते हुए कहा,आपको चिंता की कोई आवश्यकता नहीं हमारी इतनी प्रॉपर्टी पड़ी है कि किसी भी प्रॉपर्टी से हम 8 से 10 पार्षदों को मैनेज कर सकते हैं बाकी हमारे साथ हैं ही, सात ही एक बात और चली भाजपा संगठन और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी को भी अध्यक्ष बना सकते हैं इस बात को लेकर कुनवा और बढ़ गया और वो लोग ज़्यादा सक्रिय दिखने लगे जिनकी महिलाएं पार्षद हैं, सामान्य वर्ग से आते हैं, और भाजपा को बिलॉन्ग करते हैं बाकी कुछ इनके साथ इसीलिए जुट गए कि अध्यक्ष तुम बने तो काम हमारे भी आसानी से होंगे और कुछ पार्षद थे ही पैसे लेने के मूड में तथा कुछ को पुराना बकाया भी चुकाना था तो वो भी आ गए मैदान में, और इसी व्यवस्था के दम पर बाकी के सभी पार्षद जुटे रहे। पर वास्तविकता में सच्चाई यह थी कि वह जो बड़ी बघारने वाले नेता थे वह केवल चाय नाश्ते का खर्चा ही दे पा रहे थे जब ख़रीद फरोख्त की बारी आई तो अध्यक्ष खेमे को सपोर्ट करने वाले कुछ बड़े लोग जिन्हें (व्यापारी, भूमाफिया, मेडिकल माफिया) अलग-अलग नाम से सोशल मीडिया पर संबोधित किया जा रहा है वह अध्यक्ष की सीट बचाने लायक पार्षदों को खरीद ले गए और विद्रोही पार्षद हाथ मलते रह गए, ऐसा भी सोशल मीडिया पर और प्रत्यक्ष रूप से विद्रोही पार्षद कह रहे हैं। अब इसके बाद उनके पास हारने के अलावा कोई चारा था ही नहीं। अब इसमें कुछ पार्षद जो शुरू से ही पैसे और नेतागिरी दोनों का दम दिखा रहे थे बगीचा सरकार संगठन का चेहरा बनना चाह रहे थे और दिखावे के लिए सब के पीछे खड़े रहने की बात करते थे, दरअसल वही लोग सांसद सिंधिया और शीर्ष नेतृत्व में अपनी राजनीतिक छवि चमकाने के चलते एक नई पटकथा लिख बैठे जिसके चलते एक रात पहले सभी विद्रोही पार्षदों ने एक होटल में साथ बैठकर कसम खाकर एक पत्र साइन किया जिस पर यह लिखा था कि हम अपना अविश्वास प्रस्ताव वापस लेते हैं। और यह पत्र ही 25 तारीख को कलेक्ट्रेट सभागार में प्रस्तुत करना था पर दूसरे दिन मामला कुछ और ही हो गया तो विद्रोही पार्षदों के संगठन का नेतृत्व करने वाले नेताओं ने न सिर्फ अपना असली रूप दिखाया बल्कि यह कह दिया कि हमने तो संगठन को तरजीह दी थी और यही बात सब में तय हुई थी अब यह लोग आकर के अविश्वास प्रस्ताव वापस न लेने की बात करके हमको नीचा दिखाने का काम कर रहे हैं जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल रहा सभी ठगे गए पार्षद सोशल मीडिया पर अपनी-अपनी राय और सफ़ाई पेश करते  नजर आए।

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