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क्या डर से सिस्टम को सही तरीके से चलाया जा सकता है..........?? आखिर किसको किससे है डर...!!

क्या डर से सिस्टम को सही तरीके से चलाया जा सकता है..........?? आखिर किसको किससे है डर...!!

क्या डर से सिस्टम को सही तरीके से चलाया जा सकता है..........??
आखिर किसको किससे है डर...!!
जहां 15 दिनों से सफाई कर्मी झांकने नहीं गए वहां एक ही दिवस में कचरा भी उठा और गलियों की सफाई भी हुई... 
।। चर्चित समाचार एजेंसी।। 
।।शिवपुरी 05/10/25।। आज यानि 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पथ संचलन शिवपुरी के सिद्धेश्वर ग्राउंड से होते हुए फिजिकल के रास्ते हाउसिंग बोर्ड और कमला गंज होते हुए शहर की चार बस्तियों के मुख्य मार्गों को कवर करते हुए वापस सिद्धेश्वर ग्राउंड पहुंचकर  समापन होना था। इसी तरह का पथ संचलन 2 अक्टूबर दशहरे के रोज भी अलग स्थान से निकल गया था और इसी तरह 7 एवं 12 अक्टूबर को भी पथ संचलन भिन्न-भिन्न स्थानों से निकाला जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या शहर की साफ-सफाई व्यवस्था जो पथ संचलन के रास्ते में भी रुकावट बन सकती है को लेकर नगर पालिका को सजग़ होना खास करके जिम्मेदारों सीएमओ और अध्यक्ष को अत्यंत आवश्यक है.?? क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के उच्च स्तरीय सेवा कार्यों में गिनी जाने वाली वह संस्था है जिसका उद्देश्य एकमात्र सेवा करना है वहीं अपने आप में खुद सरकार भी है। अगर उनके कार्यों में कोई हीला हवाली होती है तो नतीजा तुरंत मिले या ना मिले पर मजबूत मिलता है यह सभी जानते हैं। और शायद सीएमओ भी यही जानते हैं कि अगर मेरे रहते पथ संचलन के रास्ते को साफ एवं दुरस्त नहीं किया गया तो नतीजा काफी गंभीर हो सकता है। शायद यही डर था जो कमलागंज बाबू क्वाटर क्षेत्र पर डंपिंग जोन जो पिछले 15 दिनों से प्रशासनिक और कर्मचारियों की लापरवाही का शिकार हो रहा था आज साफ भी हुआ और रोड़ों पर सफाई भी हुई। क्या यह अदृश्य  डर का नतीजा था जो अधिकारी और जनप्रतिनिधि की सीआर खराब कर सकता था या यह कहें कि, यह उस परसों वाले डर का नतीजा था जिसमें सीएमओ द्वारा 19 सफाई कर्मियों के विकेट चटकाए और 9 को सस्पेंड करके नगरपालिका कार्यालय अटैच कर दिया..?? कहने को किसी विशेष आयोजन पर शहर की साफ़ सफाई करना सामान्य प्रक्रिया है पर यकीन मानिए इन दोनों ही बातों में कहीं ना कहीं डर जरूर छुपा था..!! तभी तो कल रात यानि 4 अक्टूबर को बाबू क्वार्टर के इस कोने को जहां सुलभ शौचालय (जीर्ण शीर्ण अवस्था में है वर्तमान में उपयोग हेतु नहीं है) पर सारा कचरा इकट्ठा कर उसे ज ला दिया गया और सुबह कुछ सफाई कर्मियों द्वारा झाड़ू लगाकर रोड़ो को साफ किया गया। 
सवाल यह उठता है कि क्या डर से सिस्टम को चलाया जा सकता है..?? 
यह बात सही है कि जब कर्मचारी और अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से आंख चुराने लगते हैं तब डर ही एक ऐसा हथियार है जो उनको न सिर्फ उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराता है बल्कि समय से पहले उनके कामों को करने के लिए प्रेरित भी करता है या कह लीजिए बाध्य भी करता है। 3 अक्टूबर की शाम को सीएमओ द्वारा सफाई संरक्षकों के खिलाफ लिया गया कड़ा एक्शन तो यही नजीर पेश करता है कि अब काम निकालने के लिए विनती की नहीं भय की आवश्यकता है। फिर वह चाहे अधिकारियों का कर्मचारियों में हो, जनप्रतिनिधियों का अधिकारियों में हो या जनता का जनप्रतिनिधि में हो, डर होना जरूरी है..!! क्योंकि डर के आगे ही जीत है..!! 
इस तरह आस पास के रहवासी रोजाना यहीं कचरा डालते हैं क्योंकि कचरा गाड़ी अब वार्डों में आती नहीं है यही कारण यहां कचरा इकट्ठा हो जाता है 1 दिन तो ठीक है जब 2 या तीन दिन कचरा न उठाया जाए तो यहां रुकना मुश्किल हो जाता है वहीं अब तो 10 से 15 दिन तक कचरा नहीं उठाया जा रहा है हालात बद से बदतर हो गए हैं।
ब्रजेश शर्मा 
स्थानीय निवासी 
जहां 15 दिनों से सफाई कर्मी झांकने नहीं गए वहां एक ही दिवस में कचरा भी उठा और गलियों की सफाई भी हुई... 
क्या डर से सिस्टम को सही तरीके से चलाया जा सकता है..
पथ संचलन के रास्ते में गंदगी मिली तो सीआर खराब होने का सीएमओ को डर या फिर मूडी सीएमओ द्वारा सफ़ाई कर्मियों के काम पर ना जाने से विकेट चटकने जाने का डर...
आखिर किसको किससे है डर.. 
सफाई कर्मियों को नौकरी जाने के डर ने पहुंचाया काम पर या स्वयं अपने कर्तव्य का हुआ बोध..
लेखक:-वीरेंद्र "चर्चित"

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